रुस्तम-ए-हिन्द के अलावा रुस्तम-ए-पंजाब का तमगा जिस खिलाडी को मिला उसका नाम था दारा सिंह। खिलाड़ी, अभिनेता और राजनेता दारा सिंह ने जीवन में कोई भी काम किया, उसे ठोंक बजाकर ही किया। कुश्ती खेली तो ऐसी कि 500 मैचों में उन्हें कोई हरा नहीं पाया और अभिनय किया तो ऐसा कि आज भी लोग रामायण के भगवान हनुमान को भूलाए नहीं भुलते। पंजाब का यह शेर आज भी कई लोगों के जेहन में एक मीठी याद बनकर ताजा है। कुश्ती में दुनिया भर के पहलवानों को धुल चटाकर “रुस्तम-ए-हिन्द” का ख़िताब पाने वाले दारा सिंह ने फिल्मो में भी एक लम्बी और कामयाब पारी खेली। पांच सौ मुकाबले खेले, हारा एक भी नहीं। फिल्म निर्देशक मनमोहन देसाई ने एक बार उनके लिए कहा था कि मैं अमिताभ बच्चन को लेकर फिल्म मर्द बना रहा था और मैं सोच रहा था कि उनके पिता का रोल कौन निभा सकता है? मुझे लगा कि अगर मैं अमिताभ को मर्द की भूमिका में ले रहा हूं तो जाहिर है मर्द का बाप तो दारा सिंह ही होना चाहिए।
19 नवम्बर 1928 को जन्मे दारा सिंह रन्धावा को कम उम्र में ही घर वालों ने उनकी मर्जी के बिना उनसे उम्र में बहुत बड़ी लड़की यानी की सुरजीत कौर रंधावा से शादी कर दी। नतीजा यह हुआ कि 17 साल की नाबालिग उम्र में ही दारा सिंह प्रद्युम्न नामक बेटे के बाप बन गए। दारा सिंह की बचपन में ही बेहद मजबूत कद काठी के कारण ही उनका पहलवानी की तरफ रुझान बढ़ता चला गया। दारा सिंह का एक छोटा भाई सरदारा सिंह भी था जिसे लोग रंधावा के नाम से ही जानते थे। दारा सिंह और रंधावा दोनों ने मिलकर पहलवानी करनी शुरू कर दी और धीरे-धीरे गाँव के दंगलों से लेकर शहरों तक में ताबड़तोड़ कुश्तियाँ जीतकर अपने गाँव का नाम रोशन किया। अखाड़े में उनकी महारथ से उनकी शोहरत धीरे धीरे हर तरफ फैलने लगी और शुरुवाती दौर में कस्बो और शहरों में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाले दारा सिंह ने बाद में अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पहलवानों से मुकाबला किया। दारा सिंह मेलों में और राजा महाराजाओं के कहने पर भी कुश्ती किया करते थे।
दारा सिंह ने प्रोफेशनल रेसलर के तौर पर कई पूर्वी देशों का दौरा किया था। वे 1947 में सिंगापुर गए थे जहां उन्होंने तारलोक सिंह को हराकर चैंपियन ऑफ मलेशिया का खिताब जीता था। मलेशियन खिताब जीतने के बाद 1954 में दारा फिर भारतीय चैंपियन बने थे। दारा सिंह को हमेशा किंग कांग के साथ हुए उनके मुकाबले के लिए जाना जाता रहेगा। इतिहास के सबसे हैरतअंगेज मुकाबलों में से एक इस मुकाबले में दारा सिंह ने ऑस्ट्रेलिया के 200 किलो वजनी किंग कांग को सर से ऊपर उठाया और घुमा के फेंक दिया था। महज 130 किलो के दारा सिंह द्वारा लगाया गया ये दांव देखकर दर्शकों ने दांतो तले उंगलियां दबा ली थी। दारा के इस दांव के बाद किंग कांग रेफरी पर चिल्लाने लगा था। किंग के अनुसार यह नियमों के खिलाफ था। जब रेफरी ने दारा को ऐसा करने से रोका तो दारा ने सांसे रोक देने वाले नजारे में किंग कांग को उठाकर रिंग से बाहर फेंक दिया था और किंग दर्शकों से महज कुछ ही कदम की दूरी पर जा कर गिरे थे। दारा सिंह, किंग कांग और फ्लैश गॉर्डन ऐसे खिलाड़ी थे जिन्होंने 50 के दशक में कुश्ती की दुनिया में राज किया था। दारा और किंग का मैच देखने के लिए दर्शकों का भारी हुजूम उमड़ पड़ता था।
“रुस्तम-ए-हिन्द” के अलावा “रुस्तम-ए-पंजाब” के नाम से भी पुकारे जाने वाले दारा सिंह बाद में राष्ट्रमंडल खेलो में भी कुश्ती चैंपियन रहे | इसमें उन्होंने कनाडा के चैंपियन जोर्ज गोंड़ीयाको को हराया | इससे पहले वह भारतीय कुश्ती चैंपियनशिप पर कब्जा जमा चुके थे | वर्ष 1968 में उन्होंने विश्व कुश्ती चैंपियनशिप भी जीत ली | 1983 में उन्होंने अपने जीवन का आखिरी मुकाबला जीतने के बाद कुश्ती से सम्मानपूर्वक संन्यास ले लिया था। दिल्ली में हुए इस टूर्नामेंट में जब उन्होंने अपने संन्यास की घोषणा की थी तो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने इस टूर्नामेंट का उद्धघाटन किया था और पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जेल सिंह ने जीतने वालों को ट्रॉफी प्रदान की थी।
कुश्ती के दिनों में ही उन्हें फिल्मो में काम मिलना शुरू हो गया था | कई जगहों पर तो कहा जाता है कि पर्दे पर कमीज उतारने वाले वह पहले हीरो थे | सन 1952 में आई फिल्म “संगदिल” में छोटे लेकिन अहम रोल से उन्होंने अपने फ़िल्मी सफर की शुरुवात की थी | उसके बाद उनकी कुछ ओर फिल्मे आई | 1962 में आई बाबू भाई मिस्त्री की फिल्म “किंगकोंग” से दारा सिंह उस दौर की स्टंट फिल्मो के बड़े स्टार बन गये | उसके बाद तो “हर्कुलस”, संग्राम, रुस्तम-ए-हिन्द, शेर दिल, शंकर खान और टार्जन सीरीज की फिल्मो ने उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुचा दिया |
सन 1970 में Dara Singh दारा सिंह ने “दारा फिल्म्स” नाम से प्रोडक्शन कम्पनी की शुरुवात करते हुए “भगत धन्ना जाट “नामक एक पंजाबी फिल्म बनाई, जिसे उन्होंने डायरेक्ट भी किया था। उन्होंने डायरेक्टर चन्द्रकान्त की कई पौराणिक फिल्मो में हनुमान और बलराम जैसे किरदार निभाए। यह उनके नाम की लोकप्रियता का असर था कि केदार कपूर ने उन्हें लेकर “दारा सिंह” नाम की ही एक फिल्म बना डाली | दारा सिंह ने 125 से भी ज्यादा फिल्मो में काम किया था | पंजाबी फिल्मो में सफल रहने के साथ साथ वह करैक्टर आर्टिस्ट के तौर पर भी कई हिट हिंदी फिल्मो का हिस्सा रहे जैसे आनन्द, मेरा नाम जोकर, हम एक है, मर्द, कर्मा, धर्मात्मा, कल हो ना हो अदि। दारा सिंह के बेहद बलशाली होने की वजह से उस जमाने की अदाकाराएं उनके साथ काम करने से कतराती थी। उनके बेहद मजबूत कद काठी की वजह से ज्यादातार एक्ट्रेस ने उनके साथ काम करने से मना किया था। मुमताज को बॉलीवुड में पर्दापण कराने वाले दारा सिंह ने फिर इस अभिनेत्री के साथ 16 फिल्मों में काम किया था।
दारा सिंह ने मेरा देश मेरा धर्म (1973), भक्ति में शक्ति (1978) और रुस्तम (1982) जैसी हिंदी फिल्मे भी निर्देशित की। वह इन फिल्मो के प्रोडूसर भी थे और बतौर प्रोडूसर उन्होंने एक ओर हिंदी फिल्म किसान और भगवान भी बनाई थी। फिल्म भक्ति में शक्ति के वह लेखक भी थे। इनके अलावा पंजाबी फिल्म सवा लाख से एक लडाऊ के लेखक और निर्माता निर्देशक भी वही थे | उन्होंने 10 ओर पंजाबी फिल्मे बनाई थी | उनकी अंतिम पंजाबी फिल्म दिल अपना पंजाबी थी। उनकी फिल्म जग्गा के लिए भारत सरकार ने उन्हें सर्वश्रेष्ट अभिनेता का पुरुस्कार भी दिया था |
कई फिल्मो में हनुमान का रोल निभा चुके Dara Singh दारा सिंह ने 1980 और 90 के दशक में दारा सिंह ने टीवी का रूख किया था। अपने समय के ऐतिहासिक सीरियल रामायण में भगवान हनुमान की भूमिका निभाकर वे घऱ घऱ में जबरदस्त पहचान बनाने में कामयाब हुए थे।
वह आखिरी बार अभिनेता के तौर पर इम्तियाज अली की 2007 में रिलीज़ फिल्म “जब वी मेट” में करीना कपूर के दादा के रोल में नजर आये थे। इसके बाद 2012 में राजपाल यादव की फिल्म “अता पता लापता ” में आखिरी बार बतौर गेस्ट कलाकार के रूप में पर्दे पर नजर आये थे।
उन्होंने 1994 में अपने बेटे बिंदु को बतौर हीरो लांच करने के लिए एक फिल्म “करन” का निर्माण किया | यह फिल्म तो नही चली लेकिन विंदु हिंदी फिल्मो के एक चर्चित कलाकार जरुर बन गये | दारा सिंह 1983 को कुश्ती से रिटायर्ड हो चुके थे। वह सामाजिक कार्यो में बढ़ चढकर हिस्सा लेते रहे। खेल और सिनेमा के अलावा दारा सिंह ने राजनीति में भी हाथ आजमाया। वे देश के पहले खिलाड़ी थे जिन्हें राज्यसभा के लिए किसी राजनीतिक पार्टी ने नामित किया था। भारतीय जनता पार्टी ने उन्हें 2003-2009 तक राज्य सभा का सदस्य बनाया। इस पहलवान अभिनेता ने 83 वर्ष की उम्र में 12 जुलाई 2012 को मुम्बई में अंतिम साँसे ली। आज दारा सिंह हमारे बीच नही है लेकिन फिर भी कुश्ती के अखाड़ो में उनका नाम आदर्श गुरु के रूप में लिया जाता है।
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