हम लगातार अपने वीडियो के माध्यम से आप लोगों को विशेष व्यक्तियों के जीवन से परिचय करवाते हैं। इसी क्रम में हमने आप लोगो को रामायण के किरदार को निभाने वाले काफी सारे कलाकारों के जीवन से परिचय करवाया। रामायण को 33 वर्ष हो चुके हैं। दूरदर्शन पर पुनः प्रसारण हो रहा है। लेकिन जनता की रूचि आज भी वैसी की वैसी है। बहुत दिनों आप लोग चाह रहे थे की रामायण में मंदोदरी का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस के बारे में बताया जाए।
सबसे पहले तो हम आप को बताना चाहते हैं की बहुत सारी जगह पर प्रभा मिश्रा का नाम लिया गया है की मंदोदरी का किरदार उन्होंने निभाया था। ये भी कहा गया की वो दुनियादारी से दूर ब्रह्मकुमारी जी के आश्रम में प्रवचन करती हैं। उन महिला ने इस किरदार का क्रेडिट लेने की भी पुरजोर कोशिस की। और बहुत सारे समाचार पत्रों ने भी प्रभा मिश्रा को ही प्रमुखता से मंदोदरी का किरदार निभाने वाली एक्ट्रेस बताया है। जो की सरासर गलत हैऔर उन महिला का कृत्य भी निंदनीय है। ऐसे लोगों को निश्चित ही दंड मिलना चाहिए। अब हम आपको सच्चाई बताते हैं। असल में रामानंद सागर कृत रामायण में मंदोदरी का किरदार अपराजिता भूषण जी ने निभाया था। वह सुप्रसिद्ध एक्टर भारत भूषण जी की बेटी हैं।
अपराजिता भूषण जी का जन्म 09 नवम्बर 1954 को मुंबई में हुआ था। भारत भूषण जी की दो बेटियां थी। बड़ी बेटी का नाम अनुराधा था और अपराजिता जी इनकी छोटी बेटी हैं। अपराजिता जी से ज्यादा लगाव उन्हें अपनी बड़ी बेटी अनुराधा जी से था। क्योंकि अनुराधा जी एब्नॉर्मल चाइल्ड थी। भारत भूषण जी को हमेशा लगता था की उनके ना रहने के बाद अनुराधा जी का जीवन कैसे गुजरेगा। हालाँकि अपराजिता जी की बहन अनुराधा जी को इस दुनिया को अलविदा कहे हुए करीब 10 से 15 साल हो गए हैं। अपराजिता जी कभी एक्ट्रेस नहीं बनना चाहती थी। उनका लगाव शिक्षा और अद्ध्यात्म में ज्यादा रहा। उनकी शादी हो गयी और उस शादी से उनके एक बेटा और एक बेटी हुई।
भारत भूषण जी उनके पिता थे। इसलिए उनका बचपन किसी राजकुमारी जैसा गुजरा। गाडी, बंगला, नौकर- चाकर सब थे उनके पास। किन्तु किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। भारत भूषण जी का फ़िल्मी करियर ढलान पर आने लगा। भारत भूषण जी की बाहरी लोगों के साथ उठक बैठक कम ही थी। ज्यादातर उनका समय किताबों और संगीत में जाता था। निराशा कभी उनके चेहरे पर नहीं झलकी। और इसी का असर था की उनकी बेटी अपराजिता भूषण जी को उनसे बहुत कुछ सीखने को मिला। जब भारत भूषण जी का करियर ढलान पर आया उसी दौरान अपराजिता जी के पति का देहांत हो गया। इधर पिता जी का समय ठीक नहीं था उधर उनके पति का यूँ चले जाना। बच्चे साथ थे, आखिरकार परिवार तो चलाना ही था।
इन्होने फिल्मो और धारावाहिकों में डबिंग का काम करना शुरू किया। एक दिन जब ये रामानंद सागर जी के उमर गाँव स्टूडियो में रामायण में डबिंग का काम कर रही थी। तब इन्हे रामानंद सागर जी ने मंदोदरी का किरदार सौंप दिया। इन्हे एक्टिंग नहीं आती थी। इसलिए इन्हे रामानंद सागर जी ने कला के छेत्र में काफी कुछ सिखाया। मंदोदरी के किरदार से इनके जीवन में धनात्मक रूप से परिवर्तन आया। यहाँ से उनकी फ़िल्मी दुनिया में पहचान बन गयी और उन्हें अनेकों फिल्मो और धारवाहिकों में किरदार करने के मौके मिले।
इन्होने करीब 40 से 50 टेलीविज़न धारावाहिकों और फिल्मों में काम किया। हत्या इनके करियर की पहली फिल्म थी। इन्होने काला बाजार, विश्वात्मा, हत्या, ब्रह्मचारी, महाराज और गुप्त जैसी सुपरहिट फिल्मों में काम किया। वैसे तो ज्यादातर किरदार इन्होने पॉजिटिव ही निभाए। नेगेटिव किरदार की बात करें तो इन्होने दूरदर्शन पर प्रसारित हुए इम्तिहान धारावाहिक में नेगेटिव किरदार निभाया था। वहीँ इन्होने कुछ भोजपुरी फिल्मों में काम तो किया ही और साथ ही साथ कुछ गुजराती फिल्मों में भी काम किया। इसी दौरान उन्होंने पुणे में अपना रहने का ठिकाना बनाया।
उन्हें कभी अपने नाम की फ़िक्र नहीं हुई और ना ही सोहरत की। वर्ष 1997 में उनकी आखिरी फिल्म गुप्त आयी थी। इस फिल्म के बाद वो वापस पुणे में अपने परिवार के साथ रहने लगी। उनका बेटा कॉर्पोरेट इंडस्ट्री में है तो वहीँ उनकी बेटी एक व्यवसाय चलती हैं। वर्तमान में उनके दोनों बच्चे अच्छे से सेटल्ड हैं। दोनों बच्चों की शादी भी हो चुकी है।
जैसा हमने पहले बताया की उनकी रूचि पढाई और अद्ध्यात्म में शुरू से रही है। इसलिए जब वो फ़िल्मी दुनिया से पूरी तरह दूर हुई तो उन्होंने स्वतंत्र लेखन में हाथ आजमाया। अगर आपने टाइम्स ऑफ़ इंडिया और नवभारत टाइम्स अख़बार पढ़े होंगे। तो उसमे आपने एक कॉलम देखा होगा स्पीकिंग ट्री का। स्पीकिंग ट्री एक टाइम्स ग्रुप की धार्मिक वेबसाइट है। जहाँ विभिन्न धर्मगुरुओं के लेख आपको मिलते हैं जैसे ओशो, सद्गुरु आदि। उन्ही में से कुछ लेख इनके भी हैं। साथ ही साथ वो कैंप लगा कर उन लोगों की भी मदद करती हैं जो मानसिक रूप से परेशान हैं। फिलहाल उनकी फ़िल्मी दुनिया में कोई रूचि नहीं है। उन्हें अपने लेखन में ही संतुष्टि मिलती है।
इनके जीवन से हम सबको प्रेरणा लेनी चाहिए की कोई भी घडी हो कितना भी संकट का समय हो हार नहीं मान नई चाहिए। मेहनत करते रहो एक ना एक दिन जरूर मंजिल मिलेगी।
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