आज हम आपको एक ऐसे अभिनेता के बारे में बताएँगे जो अपनी अदाकारी के दम पर जनमानस के दिलो दिमाग के साथ साथ मन में भी बस गए और पूजनीय हो गए। ये किस्सा वर्ष 1987 का है जब छोटे पर्दे पर रामायण की शुरुआत हुई। उस समय देश में एक मात्र मनोरंजन का चैनल दूरदर्शन और कुछ घरों में टीवी हुआ करता था। ऐसे में रामायण का प्रसारण देश के लोगों को एकजुट कर देता था और रामायण की T.R.P. काफी हाई रहती थी । पूरे देश में एक अलग ही माहौल था। इस ऐतिहासिक सीरियल को देखने के लिए तब कर्फ्यू लगने जैसी स्थिति पैदा हो जाती थी। लोग टीवी के सामने बैठते तो सीरियल खत्म होने के बाद ही उठते। इन्होने 80 के दशक में V.P. सिंह के खिलाफ कांग्रेस पार्टी से चुनाव भी लड़ा। लेकिन हार गए क्योंकि ज्यादातर वोटर्स ने बैलट पेपर पर जय श्री राम लिख दिया था। हाल ही में लॉकडाउन के चलते रामायण के पुनः प्रसारण के दौरान पुरानी यादें फिर से ताजा हो गयीं। जिसमे सबसे ज्यादा पॉपुलर हुए रामायण के कलाकार। इन सब में प्रमुख थे अरुण गोविल जी।
दोस्तों आप सोच रहे होंगे बात तो अरुण गोविल की होने वाली थी तो फिर ये किस्सा क्यों ? दोस्तों वह रामायण धारावाहिक ही था जिसने अरुण गोविल की जिंदगी को बदल के रख दिया। अरुण गोविल का जन्म 12 जनवरी 1958 को उत्तर प्रदेश के मेरठ शहर में हुआ था। अरुण जी के पिता का नाम श्री चंद्र प्रकाश गोविल था। भाई का नाम विजय गोविल है। जिन्होंने बाद में एक्ट्रेस तबस्सुम से शादी की। जब ये पांचवी कक्षा में थे ये तभी से नाटकीय कार्यक्रमों में भाग लिया करते
थे। रामलीला में राम का किरदार भी निभाते थे। अरुण जी के पिता जी भी हर पिता की भांति यही चाहते थे की उनका बेटा भी सरकारी नौकरी करे। अरुण गोविल ने श्रीलेखा से विवाह किया। जिनसे उनके एक बेटा अमल गोविल और एक बेटी सोनिका गोविल है।
अरुण के भाई विजय गोविल का मुंबई में बिज़नेस था। इसलिए अरुण 1974 में मुंबई चले आये। अरुण वैसे तो मुंबई बिजनेस करने आए थे लेकिन उनका मन उस कार्य में बिलकुल नहीं लगता था। उनपर एक्टिंग का जुनून सवार हो गया और उन्होंने एक्टिंग का दामन थाम लिया। हालांकि, अभिनय में करियर बनाने के बारे में उन्होंने कभी नहीं सोचा था। उनको लगने लगा की
अभिनय के छेत्र में मैं अपना अलग मुकाम बना सकता हूँ। इस जहाँ में कुछ प्रतिशत ऐसे लोगों का भी है जो चाहते हैं की जिंदगी में कुछ ऐसा किया जाए जिससे वो हमेशा के लिए अमर हो जाएँ। लेकिन ये मुकाम हासिल करने के लिए सपनो का जिन्दा रहना जरूरी है। क्योंकि सबसे बुरा होता है सपनो का मर जाना। अरुण गोविल का भी यही सपना था और उन्होंने अपना मुकाम हासिल भी किया।
फ़िल्मी करियर की शुरुआत के लिए ये फिल्म निर्माताओं के पास भटकने लगे। भटकते भटकते तीन
साल बीत गए। 1977 मैं इन्हे पहली बार मौका मिला राजश्री प्रोडक्शन की
फिल्म पहेली में। इस फिल्म में इनके अभिनय से प्रभावित होकर तारा चाँद
बड़जात्या ने उन्हें तीन और फिल्मो के लिए साइन कर लिया। फिर 1979 में आयी
फिल्म सावन को आने दो इनके फ़िल्मी करियर का सितारा चमक गया। 80 के दसक के अंत तक
लगातार कई फिल्मो जैसे इतनी सी बात, जुदाई, हथकड़ी, दिलवाला, श्रद्धांजलि, हिम्मतवाला, शत्रु, आसमान, अय्याश
आदि फिल्मो में काम किया।
1987 में रामानंद सागर जी ने रामायण धारावाहिक बनाना शुरू किया। अरुण गोविल जी सागर जी के साथ विक्रम बेताल में काम कर चुके थे। उन्हें पता चला की रामायण धारावाहिक का निर्माण होने जा रहा है। अतः वो रामानंद सागर जी के ऑफिस ऑडिशन देने पहुंचे। रामानंद सागर जी ने इन्हे रिजेक्ट
कर दिया। कुछ समय बाद इन्हे पुनः बुलाया और कहा तुम्हारे जैसा राम नहीं मिल रहा। और इस तरह इन्हे मिला राम का किरदार। और इस किरदार ने इन्हे
हमेशा हमेशा के लिए अमर कर दिया।
राम का किरदार निभा कर
इन्होने दर्शकों के मन मस्तिष्क पर कुछ ऐसी छाप छोड़ी दर्शक इनकी तस्वीर की
पूजा करने लगे। जब भी ये घर से बाहर निकलते तो लोग इनके पैरों में गिर
जाते। समस्याएं सुनाने लगते। इसमे एक किस्सा ये भी है की दिल्ली में एक सख्श ने पार्टी रखी थी। जिसमे अरुण गोविल भी आमंत्रित थे। अरुण गोविल अपने साथी कलाकारों के साथ डिनर कर रहे थे। तभी पार्टी के आयोजक अपनी माँ को वहां लेकर आ गए और बताया की माँ यही वो राम हैं जिन्हे आप पूजती हैं। वो महिला 80 के आस पास की उम्र की थी। वो महिला अरुण गोविल को देखते ही उनके पैरों पर लेट गयी। अरुण गोविल ये सब देख कर अचंभित हो गए और उन महिला को उठने के लिए कहा।
दूसरा किस्सा ये है की एक बार रामायण धारावाहिक प्रसारण के दौरान अरुण गोविल उत्तर प्रदेश के किसी गाँव से गुजर रहे थे। उन्होंने अपनी कार रोक कर सड़क किनारे एक घर में गए जहाँ एक सख्श अकेला बैठे टीवी पर रामायण देख रहा था। वे वही बैठ कर रामायण देखने लगे। उस व्यक्ति को किसी के आने का आभास हुआ। उसने पीछे मुड़ कर देखा और पुनः रामायण देखने लगा। लेकिन अचानक से उसे कुछ शक हुआ और दोबारा देखा और अरुण गोविल का चेहरा राम से मिलाने लगा। जैसे ही उसने पहचाना वो तुरंत गावं में भागा और चिल्लाने लगा मेरे घर भगवान् राम आये हैं।
एक किस्सा मेरे साथ भी 2014 में हुआ। मैं किसी की सगाई कार्यक्रम में मेरठ के पास एक गाँव में गया और एक घर में रुका। जिस घर में रुका वहां दीवार पर अरुण गोविल की राम रूप में हाथ की बनी अद्भुत पेंटिंग लगी हुई थी। जिस पर रोज पुष्प भी चढ़ाये जाते थे। इस से पता चलता है की आज भी अरुण गोविल के उस राम रूप की पूजा होती है।
लगातार
तीन साल रामायण सीरियल को पूरा करने के बाद जब इन्होने फ़िल्मी दुनिया में
वापसी की तो दर्शकों ने इन्हे अन्य किसी रूप में स्वीकार नहीं किया। इसके
बाद इन्हे लगातार धार्मिक सीरियल और फिल्मों में काम ऑफर होने लगे। लेकिन
अरुण जी अपनी इस छवि से बाहर निकलना चाहते थे। इसलिए इन्होने कई फिल्मो
में बोल्ड और नेगेटिव किरदार भी निभाए। लेकिन अपनी राम वाली छवि को दर्शकों
के मस्तिक से नहीं हटा पाए।
राम का किरदार निभाने से पहले अरुण जी ने रामानंद सागर जी के एक और मशहूर शो ‘विक्रम और बेताल’ में राजा विक्रमादित्य का किरदार निभाया था।
राम का किरदरा निभाने के बाद अरुण जी ने ‘लव कुश’, ‘कैसे कहूं’, ‘बुद्धा’, ‘अपराजिता’, ‘वो हुए न हमारे’ और ‘प्यार की कश्ती में’ जैसे कई पॉपुलर टीवी सीरियल में काम किया.
जिसे हर घर में पहचाना जाने लगा हो, उसे काम मिलना बेहद मुश्किल हो रहा था। अरुण को लोग राम के रूप में ही देख रहे थे, इसलिए उन्हें कोई और किरदार नहीं मिल रहे थे। जिस वजह से उनका एक्टिंग करियर खत्म हो गया। उसके बाद वो करीब 9 से 10 सालों तक टीवी की दुनिया से दूर रहें। ये एक जगह काम मांगने गए तो निर्देशक ने कह दिया की अब हम तुम्हे क्या दें तुम्हे तो वो मिल गया जो किसी को नहीं मिला।
अरुण एक चमकते सितारे थे, लेकिन उनके पास काम नहीं था जिस वजह से उन्होंने प्रोडक्शन का काम संभाला. अपने को- स्टार सुनील लाहिड़ी यानि रामायण के लक्ष्मण के साथ मिलकर उन्होंने अपनी एक टीवी कंपनी बनाई, जिसके तहत वह कार्यक्रमों के निर्माण से जुड़े रहे और इसमें उन्होंने मुख्य रूप से दूरदर्शन के लिए कार्यक्रम बनाए.
अरुण गोविल जी ने राम की छवि से बाहर निकलने की भी काफी कोशिश की, फिल्मों में बोल्ड सीन्स किए, कुछ धारावाहिकों में नेगेटिव किरदार निभाया, लेकिन वो राम की छवि से कभी बाहर नहीं निकल पाए। भले ही ‘रामायण’ को लगभग तीन दशक से ज्यादा हो गए हों, पर अरुण जी जहाँ कहीं जाते हैं वो आज भी राम के रुप में पूजे जाते हैं। राम को मानने वाले अरुण जी में ही राम को देखते हैं। हाल फिलहाल में अरुण जी काफी सारे रियलिटी शोज में आ चुके हैं जैसे दा कपिल शर्मा शो, सारेगामा पा, स्टार प्लस के गणेश उत्सव इत्यादि।
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अरुण गोविल का जन्म 12 जनवरी, 1558 को उत्तर प्रदेश के मेरठ में हुआ। अरुण गोविल जी के छह भाई और और दो बहने है। उनके पिता श्री चंद्रप्रकाश गोविल एक सरकारी अधिकारी थे। उनका सपना था, कि वे एक अभिनेता के रूप में जाने जाएँ। इसी सपने को पूरा करने के लिए वे लगभग 17 साल की उम्र में मुंबई चले गए। मुंबई में उन्हें अभिनय के नए रास्ते मिलना शुरू हो गए।
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