हर क्रिकेट खिलाडी का एक सपना होता है की उसे अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट मैचों में खेलने का मौका मिले। इस सपने को पूरा करने के लिए वो अपना जी जान लगा देता है। इस सपने के पूरा होते ही वो अंतरास्ट्रीय क्रिकेट के आंकड़ों में अपना नाम दर्ज करा लेता है। लेकिन इन्ही आंकड़ों में एक ऐसा आंकड़ा भी दर्ज है जब एक खिलाडी ने न सिर्फ भारत की टीम की और से खेला बल्कि वो इंग्लैंड की तरफ से भी खेला। क्या है पूरी कहानी जानेंगे लेकिन उस से पहले आपसे निवेदन है चैनल को अगर अब तक भी सब्सक्राइब नहीं किया है तो कर लें एक यही चीज है जो हमें और वीडियो बनाने में मदद करती है। कमेंट करके जरूर बताएं आपको वीडियो कैसा लगा और पसंद आये तो लाइक भी कर दें।
नवाब इफ्तिखार अली खान पटौदी एकमात्र टेस्ट क्रिकेटर हैं जिन्होंने भारत और इंग्लैंड दोनों देशों के लिए खेला है। नवाब इफ्तिखार अली सैफ अली खान के दादा भी हैं। इन दोनों देशों के अलावा उन्होंने पटियाला के महाराजा की टीम XI, ऑक्सफ़ोर्ड विश्वविद्यालय, दक्षिण पंजाब, पश्चिम भारत और वूस्टरशर (इंग्लैंड) के लिए भी खेला है। 1946 में पटौदी ने भारत के इंग्लैंड टूर की कप्तानी भी की थी।
इफ्तिखार अली खान 16 मार्च 1910 को दिल्ली के पटौदी हाउस में पैदा हुए थे। उनके पिता पटौदी के नवाब मुहम्मद इब्राहिम अली खान थे और मां शाहर बानो बेगम थीं। बहुत ही छोटी उम्र में इफ्तिखार, पटौदी उस समय की एक रियासत के नवाब बन गए क्योंकि 1917 में ही उनके पिता का देहांत हो गया था। उन्हें औपचारिक रूप से 1931 में नवाब बनाया गया। खान लाहौर के चीफ्स कॉलेज में गए और उसके बाद पढ़ने के लिए बल्लीओल कॉलेज ऑक्सफ़ोर्ड चले गए।
1939 में इफ्तिखार ने साजिदा सुल्तान से शादी की जो भोपाल के आखिरी नवाब की दूसरी पुत्री थीं। इस दम्पति ने मंसूर अली खान पटौदी को जन्म दिया जिन्हें आज क्रिकेट के नवाब के नाम से भी जाना जाता है।
नवाब इफ्तिखार अली खान एक राइट हैंडेड बैट्समैन थे जिन्होंने छह टेस्ट मैच और 127 फर्स्ट क्लास मैच खेले।
शुरुआती समय में इफ्तिखार अली खान की शिक्षा भारत में ही हुई। उनकी आगे की पढाई और ट्रेनिंग इंग्लैंड में संपन्न हुई जहाँ उन्होंने 1932-33 की ‘बॉडीलाइन’ सीरीज के लिए इंग्लैंड की टीम में जगह बनाई। अपने पहले ही टेस्ट मैच में उन्होंने सिडनी के एशेज टेस्ट में शतक जड़ा लेकिन इसके बावजूद वे दूसरे मैच के बाद ही सीरीज से बाहर हो गए। साल 1934 तक पटौदी सिर्फ इंग्लैंड के काउंटी मैच ही खेल पाए।
वूस्टरशर काउंटी के मैचों में बहुत ही बेहतरीन प्रदर्शन दिखाने के बाद 1934 में आखिरकार उन्होंने इंग्लैंड बनाम ऑस्ट्रेलिया टेस्ट में जगह बनाई जो इंग्लैंड की तरफ से उनकी आखिरी पारी भी थी। साल 1936 में भारत में होने वाले इंग्लैंड टूर के लिए उन्हें कप्तान चुना गया लेकिन अपने स्वास्थ्य का हवाला देते हुए उन्होंने अपना नाम वापस ले लिया।
इसके बाद वह भारत आ गए और भारतीय टीम की तरफ से खेलना शुरू किया। साल 1946 में तब छतीस वर्षीय पटौदी को भारत के इंग्लैंड टूर का कप्तान चुना गया जो द्वित्तीय विश्व युद्ध ख़त्म होने के बाद हो रहा था और इंग्लैंड सम्पूर्ण मैच खेलने को तैयार भी था। भारत ने इसमें 29 फर्स्ट क्लास मैच खेले जिसमें उसने 11 जीते, 4 हारे और 14 में ड्रा मिला।
पटौदी की इंग्लैंड में परफॉर्मन्स इतनी शानदार नहीं थी, वो भी तब जब उन्होंने 1930 के दशक में इंग्लैंड के लिए क्रिकेट खेला हुआ था. उन्होंने इस टूर में लगभग 1000 रन बनाये, लेकिन टेस्ट मैच में केवल 11 की औसत ही रख पाए, जिसे भारत हार गया. इसके लिए उनकी कप्तानी की खूब आलोचना भी हुई. इसके कुछ ही समय बाद उन्होंने क्रिकेट से रिटायरमेंट ले लिया और पांच जनवरी 1952, अपने पुत्र टाइगर पटौदी के जन्मदिवस पर पोलो खेलते समय दिल का दौरा पड़ने की वजह से दम तोड़ दिया।
2007 में मेरिलबोन क्रिकेट क्लब ने भारत और इंग्लैंड के बीच हुए पहले क्रिकेट मैच की 75वीं सालगिरह के उपरांत इफ्तिखार अली खान के नाम पर एक टेस्ट ट्रॉफी की घोषणा की जिसका नाम ‘पटौदी ट्रॉफी’ रखा गया . यह खास ट्रॉफी भारत और इंग्लैंड के बीच एक टेस्ट सीरीज जीतने वाले को मिलती है। अब तक 4 बार हुए इस ट्रॉफी टेस्ट में भारत सिर्फ एक ही बार जीत दर्ज करा पाया है।
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