कौन हैं नांबी नारायण क्या लगे थे आरोप ISRO Scientist Nambi Narayanan Biography in Hindi... जानें इसरो साइंटिस्ट की पूरी कहानी

ISRO Scientist Nambi Narayanan biography in hindi


12 December 1941 को कन्याकुमारी में जन्मे इसरो के साइंटिस्ट नांबी नारायणन को जीवन में इतना कठिन समय देखना पड़ेगा ये किसी ने नहीं सोचा था। घटना ऐसी घटी की केरल राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री को स्तीफा तक देना पड़ा। आखिर कौन हैं नांबी नारायणन ? नांबी नारायणन एक राकेट वैज्ञानिक हैं। नांबी नारायणन ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कन्याकुमारी के ही डीवीडी हायर सेकेंडरी स्कूल से पूरी की। अपनी एमटेक कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग थिरुअनंतपुरम से पूरी करने के बाद इन्होने इसरो ज्वाइन किया। साराभाई के कहने पर इन्होने छुट्टी लेकर नासा से नासा फेलोशिप भी प्राप्त किया। वर्ष 1969 में प्रिंसटोन यूनिवर्सिटी से केमिकल प्रोपल्शन में रिकॉर्ड 10 महीने में मास्टर्स पूरा किया। इसके बाद नारायणन वर्ष 1970 में लिक्विड फ्यूल राकेट टेक्नोलॉजी भारत में लाये। इससे पहले भारत की राकेट टेक्नोलॉजी सॉलिड प्रोपेल्लेंट्स पर निर्भर थी। इसके बाद इसरो ने अपनी टेक्नोलॉजी में काफी कुछ सुधार किया। 


सब कुछ सही चल रहा था। लेकिन वर्ष 1994 में केरल पुलिस ने नांबी नारायणन को ये आरोप लगाते हुए गिरफ्तार कर लिया कि उन्होंने मालदीव की महिलाओं - मरियम राशीदा और फौजिा हसन को अंतरिक्ष अनुसंधान के गुप्त दस्तावेज लीक किए। इसके बाद इन्हे 50 दिन जेल में रखा गया और टॉर्चर किया गया। इनको इस बात का भी दुःख हुआ की इसरो से भी उन्हें कोई मदद नहीं मिली।

इस केस की छानबीन की जिम्मेदारी सीबीआई को सौंपी गयी। वर्ष 1996 में सीबीआई ने केस को झूठा करार दिया। वर्ष 1998 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इन्हे निर्दोष माना। यह मामला तब काफी तूल पकड़ लिया था और तत्कालीन मुख्यमंत्री को इस्तीफा देना पड़ा था। जब राज्य में के करुणाकरन की अगुवाई वाली कांग्रेस सरकार थी, एक अन्य वैज्ञानिक डी शशिकुमारन को भी इस मामले में फंसाया गया था। वर्ष 1999 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने नारायणन के करियर, पारिवारिक, मानसिक और शारीरिक प्रताड़ना को ध्यान में रखते हुए केरल सरकार के खिलाफ निंदा प्रस्ताव पास किया। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद इन्हे इसरो में डेस्क जॉब में लगाया गया।

वर्ष 2001 में इनका रिटायरमेंट हुआ और उसी वर्ष राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने केरल सरकार को आदेश दिया की वो नारायणन को मानहानि के मुआवजे के तौर पर 1 करोड़ रूपये का भुगतान करे। फिर केरल हाई कोर्ट ने भी केरल सरकार को दस लाख रूपये मुआवजे के तौर पर देने का आदेश दिया।

वर्ष 2012 में रिपोर्ट आयी की केरल सरकार ने हाई कोर्ट के आदेश का पालन नहीं किया है। बल्कि 2011 में उस समय के पुलिस अधिकारी को चीफ इनफार्मेशन अफसर भी बना दिया गया। वर्ष 2013 से नारायणन ने न्याय के लिए लड़ना शुरू किया। संघर्ष करते करते 5 वर्ष निकल गए और वर्ष 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने मानसिक प्रताड़ना को ध्यान में रखते हुए केरल राज्य सरकार को आदेश दिया की वैज्ञानिक नांबी नारायणन को मानहानि के मुआवजे के तौर पर पचास लाख रूपये का भुगतान आठ सप्ताह में करे एवं तीन सदस्यों की बेंच बनाई जिसने ये तय करना था की तत्कालीन दोषी पुलिस अधिकारीयों को क्या सजा दी जाए। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद केरल सरकार ने मानहानी के तौर पर वैज्ञानिक नांबी नारायणन को एक करोड़ तीस लाख रूपये का भुगतान किया। आख़िरकार वैज्ञानिक नांबी नारायणन की न्याय की लड़ाई रंग लायी और 26 जनुअरी 2019 में वैज्ञानिक नांबी नारायणन को पद्मभूषण पुरस्कार से नवाजा गया।

जिन पुलिस अधिकारियों के कारण नांबी को मानसिक प्रताड़ना से गुजरना पड़ा है उनके खिलाफ कार्रवाई के बारे में कमिटी को सुझाव पेश करने को कहा गया था। कमिटी ने रिपोर्ट पेश कर दी है और अब मामले में आगे की सुनवाई अगले हफ्ते होगी। एक खुसखबरी भी है आपके लिए इनके जीवन पर फिल्म भी बनी है जो इसी वर्ष 2021 में रिलीज़ होगी। 

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