वह शिक्षामंत्री जिसने किताबों में 'ग' से 'गणेश' की जगह 'ग' से 'गदहा' कराया 9th President of India Dr Shankar Dayal Sharma Biography in Hindi, Age, Wife, Family, Politician

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सेक्युलरिज़्म यानी माइनॉरिटी को खुश करने की एक मीठी दवाई। ये वो इंजेक्शन है जिसे नेता लोग चुनाव में ज्यादा इस्तेमाल करते हैं। आज हम आपको बताते हैं कैसे किताबों में ग से गणेश की जगह ग से गदहा हुआ। ये कहानी है मध्य प्रदेश के एक पूर्व शिक्षा मंत्री की जिन्हे बाद में भारत के नवें राष्ट्रपति के रूप में जाना गया। हम बात कर रहे हैं भारत के नौवें राष्ट्रपति डॉ. शंकर दयाल शर्मा की। डॉ शंकर दयाल जी के राजनैतिक सफ़र की शुरुवात 1940 में तब हुई, जब उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के लिए कांग्रेस पार्टी की सदस्यता ग्रहण की। जिसके अंदर रह कर उन्होंने स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए लड़ाईयां लड़ी, बहुत से आन्दोलन में हिस्सा लिया। आजादी के बाद 1952 में ही कांग्रेस का प्रतिनिधित्व करते हुए, वे भोपाल के मुख्यमंत्री बन गए एवं 1956 तक इस पद पर रहे।

एक नंवबर 1956 को जब मध्य प्रदेश राज्य का गठन हुआ तो इसी में भोपाल राज्य का विलय हो गया। इसके बाद बनी सरकारों में शंकर दयाल शर्मा को बतौर मंत्री शामिल किया गया। मध्य प्रदेश की सरकार में शंकर दयाल शर्मा को शिक्षामंत्री बनाया गया था। अब जो सीएम पद संभाला चुका हो तो उसका सेक्युलर होना तो स्वाभाविक ही था। दूसरी तरफ भोपाल राज्य की अच्छी खासी आबादी मुस्लिमों की थी। कहते हैं शंकर दयाल शर्मा अपनी शासन शैली में भी सेक्युलरिज्म दर्शाने की पूरी कोशिश करते थे। नए मध्य प्रदेश का शिक्षामंत्री बनते ही उन्होंने बच्चों की पाठ्य पुस्तक में 'ग' से गणेश शब्द हटवा कर उन्होंने 'ग' से गदहा करवा दिया था। वो मानते थे कि सेक्युलर देश में बच्चे जब बचपन से ही पाठ्य पुस्तक में गणेश शब्द पढ़ेंगे तो उनका स्वभाव शायद सेक्युलर ना रहे। उस वक्त शंकर दयाल शर्मा के इस फैसले का हिंदूमहासभा और जनसंघ के लोगों ने काफी विरोध किया था, लेकिन कांग्रेस की मजबूत सरकार होने के चलते यह मुद्दा दब गया था।

इसके बाद बतौर शिक्षामंत्री उनपर सवाल उठने लगे और इसे देखते हुए साल 1967 में उन्हें मध्य प्रदेश का उद्योग मंत्री बनाया गया। बाद में उन्हें कांग्रेस का अध्यक्ष बनने का भी मौका मिला। भारत की पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी के पक्के सपोर्टर माने जाने वाले शंकर दयाल शर्मा को केंद्र में मंत्री, पंजाब और महाराष्ट्र में राज्यपाल और फिर राष्ट्रपति पद से शुशोभित किया गया। अपने जीवन के अन्तिम पांच वर्षो में वे बीमार रहे। 9 अक्टूबर 1999 को उन्हें दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया।

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