Sudha Chandran Height, Age, Wife, Children, Family, Biography
इंसान के जीवन में यदि कोई दुर्घटना घट जाए तो उसके सामने दो रास्ते होते हैं या तो वो हाथ पर हाथ रख के उन परेशानियों को कोसता रहे या फिर थोड़ा जज्बा दिखा कर उन परेशानियों पर काबू पा ले और आगे बढे। आज हम ऐसी ही महान हस्ती की बात करने जा रहे हैं। जिनका नाम है सुधा चंद्रन। सुधा चंद्रन को कौन नहीं जानता हैं, सुधा चंद्रन ने न सिर्फ नृत्य बल्कि अपनी अभिनय की कला से भी दर्शकों के दिलों में विशेष जगह बनायी। टीवी सीरियल Kaahin Kissii Roz की Ramola Sikand और Naagin की Yamini Singh Raheja जैसे किरदारों ने सुधा चंद्रन को दर्शकों में लोकप्रिय बना दिया।
21 सितम्बर 1964 को केरल में जन्मी सुधा चंद्रन को बचपन से ही नृत्य करने का शौक था। इनकी माँ का नाम थंगम एवं पिता का नाम के. डी. चंद्रन है। इनके पिता बॉलीवुड के प्रसिद्द अभिनेता थे। हाल ही में इनका निधन हो गया। सुधा एक मध्यवर्गीय परिवार की रहने वाली थी लेकिन उनके माता पिता ने सुधा को उच्च शिक्षा दिलाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इन्होने मात्र 3 वर्ष की उम्र में भारतीय शास्त्रीय नृत्य सीखना आरम्भ किया। शुरुआत में नृत्य विद्यालय के शिक्षकों ने इतनी छोटी उम्र की बच्ची के दाखिले में हिचकिचाहट महसूस की किंतु सुधा की प्रतिभा देखकर सुप्रसिद्ध नृत्य शिक्षक श्री के.एस. रामास्वामी भागवतार ने उन्हें शिष्या के रूप में स्वीकार कर लिया और सुधा उनसे नियमित प्रशिक्षण प्राप्त करने लगी। नृत्य के साथ-साथ, अध्ययन में भी सुधा ने अपनी प्रतिभा दिखाई। 5 साल की उम्र से लेकर 16 साल की उम्र तक उन्होंने 75 से अधिक स्टेज शो देकर भरतनाट्यम की उम्दा कलाकार के रूप में शोहरत हासिल कर ली थी। उन्हें अनेक राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय पुरस्कार मिल चुके थे।
लेकिन सुधा के स्वप्नों की इंद्रधनुषी दुनिया में एकाएक 2 मई, 1981 को अँधेरा छा गया। वो पैर जो हमेसा गाने की धुन पर थिरकने लगते थे अचानक से मौन हो गए। 2 मई को वह तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली में स्थित एक मंदिर से वापस बस में सफ़र कर लौट रही थी, तभी सामने से आ रहे ट्रक ने उनकी बस को जोर से टक्कर मारा। उस भयंकर दुर्घटना में बहुत से लोग घायल हो गए। इस दुर्घटना में सुधा के बाएँ पाँव की एड़ी टूट गई और दायाँ पाँव बुरी तरह जख्मी हो गया। प्लास्टर लगने पर बायाँ पाँव तो ठीक हो गया। किंतु डॉक्टर ने बताया की उनके दाहिने पैर में गैंग्रीन हो गया है जिसे वक़्त रहते काटा नहीं गया तो सुधा के जान को खतरा हो सकता है। मजबूरी में इनके माता पिता ने डॉक्टर को पैर काटने की अनुमति दे दी। एक टाँग का कट जाना संभवतः किसी भी नृत्यांगना के जीवन का अंत ही होता। सुधा के साथ भी यही हुआ। उन्हें लगने लगा था की एक पैर के ना रहने से उनका भविष्य पूरी तरह से अन्धकार में चला गया है। जो लड़की कभी एक मशहूर डांसर बनने का ख्वाब देखती थी कुछ ही पल में उसकी दुनिया ही पलट गयी थी, ऐसा लगा जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया।
इसी बीच सुधा ने मैग्सेसे पुरस्कार विजेता सुप्रसिद्ध कृत्रिम अंग विशेषज्ञ डॉ. पी.सी. सेठी के बारे में सुना। डॉ. सेठी को जयपुर फूट के आविष्कार से Megsaysay Award से सम्मानित किया गया था. उस इस्तिहार को देखते ही सुधा जी ने डॉ. सेठी को एक पत्र लिखा की वो उनसे मिलना चाहती हैं। डॉ. सेठी सुधा जी से मिलने के लिए तैयार हो गए। वह जयपुर गई और डॉ. सेठी से मिली।
डॉ. सेठी ने सुधा के लिए एक विशेष प्रकार की टाँग बनाई जो अल्यूमिनियम की थी और इसमें ऐसी व्यवस्था थी कि वह टाँग को आसानी से घुमा सकती थी. सुधा एक नए विश्वास के साथ मुंबई लौटी और उसने नृत्य का अभ्यास शुरू करना चाहा किंतु इस प्रयास में कटी हुई टाँग से खून निकलने लगा।
कोई भी सामान्य व्यक्ति इस तरह की घटना के बाद दुबारा नाचने की हिम्मत कतई नहीं करता किंतु सुधा साधारण मिट्टी की नहीं बनी थी। जल्दी ही उसने अपनी निराशा पर काबू प्राप्त किया और अपने नृत्य प्रशिक्षक को साथ लेकर डॉ. सेठी से पुनः मिली।
डॉ. सेठी ने सुधा के नृत्य प्रशिक्षक से नृत्य हेतु पाँवों की विभिन्न मुद्राओं को गंभीरता से देखा-परखा और एक नयी टाँग बनवाई, जो नृत्य की विशेष ज़रूरतों को ध्यान में रखकर बनाई गई थी। टाँग लगाते समय डॉ. सेठी ने सुधा से कहा- “मैं जो कुछ कर सकता था मैंने कर दिया, अब तुम्हारी बारी है।” सुधा ने पुनः नृत्य का अभ्यास प्रारंभ किया। धीरे-धीरे सुधा का हौसला बढ़ता गया और उन्होंने दर्दनाक दुर्घटना को भूलकर फिर से अपने सपने के तरफ ध्यान दिया। अपने नकली पैर के साथ उन्होंने फिर से नृत्य की कला सीखी। वो रात दिन नृत्य का अभ्यास करने लगी थी इस अभ्यास में उन्हें बहुत पीड़ा भी होती थी। कठिन अभ्यास से सुधा जल्द ही सामान्य नृत्य मुद्राओं को प्रदर्शित करने में सफल हो गई.
28 जनवरी, 1984 को मुंबई के ‘साउथ इंडिया वेलफेयर सोसायटी’ के हाल में एक अन्य नृत्यांगना प्रीति के साथ सुधा ने दुबारा नृत्य के सार्वजनिक प्रदर्शन का आमंत्रण स्वीकार कर लिया। जब उन्होंने स्टेज पर अपने कुत्रिम पैरों से प्रदर्शन दिखाया तो लोगों की प्रतिक्रिया प्रेरनादायी थी। पुरे सभाघर में तालियों की गूंज बहुत देर तक गूंजती रही। धीरे धीरे पुरे देश में उनके बारे में चर्चा होने लगी।
पत्र-पत्रिकाओं में सुधा की कहानी छपने लगी. तभी जाने माने फिल्म निर्माता रामोजी राव की नज़र उनकी कहानी पर पड़ी. उन्होंने 1984 में सुधा की ज़िंदगी पर तेलुगु में “मयूरी” नाम की फिल्म बनाई। अपने पात्र को सुधा ने स्वयं परदे पर जीवंत कर दिया। फ़िल्म को अद्भुत सफलता मिली और इस फ़िल्म में अभिनय के लिए सुधा को भारत के 33वें राष्ट्रीय फ़िल्म समारोह में विशेष पुरस्कार प्रदान किया गया। ‘मयूरी’ की सफलता को देखते हुए इसके निर्माता ने यह फ़िल्म हिंदी में भी ‘नाचे मयूरी’ नाम से प्रदर्शित की और सुधा ने पूरे भारत को अपनी प्रतिभा का मुरीद कर दिया।
उसके बाद से सुधा चंद्रन की ज़िंदगी बदल गयी और उन्होंने बहुत सारी फिल्मों और धारावाहिकों में काम किया। आज सुधा एक व्यस्त नृत्यांगना ही नहीं, फ़िल्म कलाकार भी है, जो मलयालम, तमिल, तेलुगु, हिंदी, मराठी, गुजराती और कन्नड़ फिल्म उद्योग में काम कर रही हैं। सुधा को उसके असामान्य साहस और श्रेष्ठ उपलब्धियों के लिए कई पुरस्कार भी प्राप्त हो चुके हैं।
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