नमस्कार दर्शकों मेरा नाम है केशव और आप देख रहे हैं लेखक की लेखनी। हाल फिलहाल में आपने बागेश्वर धाम का नाम खूब सुना होगा। और इसके पीछे है पंडित धीरेन्द्र कृष्ण कुमार शास्त्री के चमत्कार से भरे वो वीडियो जो सोशल मीडिया में फैले हुए हैं। धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री कागज पर लिख देते हैं और बिना बताए ही लोगों के मन की बात भी जान लेते हैं। यह दावा लाखों की संख्या में मौजूद धीरेन्द्रकृष्ण शास्त्री के भक्त करते आए हैं। जगद्गुरु रामभद्राचार्य का जन्म 14 जनवरी 1950 को जौनपुर के उत्तर प्रदेश में हुआ था। सरयूपरीण ब्राह्मण कुल के वशिष्ठ गोत्र में जन्में रामभद्राचार्य की आंखें महज दो माह की उम्र में चली गई। दरअसल, उन्हें ट्रकोम नामक बीमारी हुई थी। गांव की महिला ने कोई दवा डाली तो आंखों से खून निकलने लगा। आयुर्वेदिक, होम्योपैठ, एलोपैथ सभी इलाज हुआ। उनका प्रारंभिक नाम गिरधर मिश्रा है। गिरधर को इलाज के लिए सीतापुर, लखनऊ और मुंबई में दिखाया गया, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। बचपन में ही आंख जाने के बाद उनके सामने समस्याएं काफी अधिक थी। लेकिन, इसे उन्होंने अलग नजरिए से देखा। पिता के मुंबई में नौकरी करने के बाद दादा ने उन्हें प्रारंभिक शिक्षा दी। रामायण, महाभारत, विश्रामसागर, सुखसागर, प्रेमसागर, ब्रजविलास जैसे किताबों का पाठ कराया। विलक्षण प्रतिभा के धनी गिरधर ने महज तीन साल की उम्र में अपनी रचना अपने दादा को सुनाई तो सब दंग रह गए।
पहली रचना में वे बालक गिरधर ने एक गोपी के जरिए मैया यसोदा को उलाहना देती दिखी। रचना थी- मेरे गिरिधारी जी से काहे लरी। तुम तरुणी मेरो गिरिधर बालक काहे भुजा पकरी। सुसुकि सुसुकि मेरो गिरिधर रोवत तू मुसुकात खरी। तू अहिरिन अतिसय झगराऊ बरबस आय खरी। गिरिधर कर गहि कहत जसोदा आंचर ओट करी। इसका अर्थ यह है कि हे यशोदा, तुम मेरे गिरधारी से क्यों लड़ी। मेरे गिरधर की कोमल बाहों को क्यों पकड़ा। मेरा गिरधर सिसक-सिसक कर रो रहा है और तुम मुस्कुराती खड़ी हो। तुम यादव कुल की झगड़ारू महिला हो।
22 भाषाओं के जानकार, 80 से अधिक रचनाओं के लेखक
जगद्गुरु रामभद्राचार्य को बहुभाषाविद कहा जाता है। वे 22 भाषाओं में पारंगत हैं। संस्कृत और हिंदी के अलावा अवधि, मैथिली सहित अन्य भाषाओं में कविता कहते हैं। अपनी रचनाएं रची हैं। अब तक उन्होंने 80 से अधिक पुस्तकों की रचना की है। इसमें दो संस्कृत और दो हिंदी के महाकाव्य भी शामिल हैं। तुलसीदास पर देश के सर्वश्रेष्ठ विशेषज्ञों में से उन्हें एक माना जाता है। जगद्गुरु रामभद्राचार्य न लिख सकते हैं। न पढ़ सकते हैं। न ही उन्होंने ब्रेल लिपि का प्रयोग किया है। वे केवल सुनकर शिक्षा हासिल की। बोलकर अपनी रचनाएं लिखवाते हैं। उनकी इस अप्रतिम ज्ञान के कारण भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 2015 में पद्मविभूषण से सम्मानित किया था।
तुलसीपीठ के संस्थापक, रामानंद संप्रदाय के जगद्गुरु
रामभद्राचार्य एक भारतीय हिंदू आध्यात्मिक नेता के तौर पर माने जाते हैं। वे शिक्षक, संस्कृत विद्वान, बहुभाषाविद, कवि, लेखक, पाठ्य टीकाकार , दार्शनिक, संगीतकार, गायक, नाटककार के में भी जाने जाते हैं। संत तुलसीदास के नाम पर चित्रकूट में एक धार्मिक और सामाजिक सेवा संस्थान तुलसी पीठ की स्थापना उन्होंने की। इसके वे प्रमुख हैं। चित्रकूट के जगद्गुरु रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय के संस्थापक और आजीवन चांसलर हैं। यह विशेष रूप से चार प्रकार के विकलांग छात्रों को स्नातक और पीजी पाठ्यक्रम करता है। रामानंद संप्रदाय के चार जगद्गुरु में से वे एक हैं। वर्ष 1988 में उन्होंने यह पद धारक हैं। उनके प्रवचन और दर्शन के लाखों-करोड़ों फॉलोअर्स देश में मौजूद हैं। उनकी विलक्षण प्रतिभा का हर कोई कायल है।
रामभद्राचार्य का नाम हिंदू संत समाज में काफी आदर के साथ लिया जाता है। यह सम्मान उन्होंने अपनी विशेष काबिलियत से हासिल किया है। सुप्रीम कोर्ट में राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद में उनकी गवाही सुर्खियां बनी थीं। वेद-पुराणों के उद्धहरणों के साथ उनकी गवाही का कोर्ट भी कायल हो गया था। श्रीराम जन्मभूमि के पक्ष में वे वादी के तौर पर उपस्थित हुए थेद्ध ऋग्वेद की जैमिनीय संहिता से उन्होंने उद्धहरण दिया था। इसमें सरयू नदी के स्थान विशेष से दिशा और दूरी का बिल्कुल सटीक ब्योरा देते हुए रामभद्राचार्य ने श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई थी। कार्ट में इसके बाद जैमिनीय संहिता मंगाई गई। उसमें जगद्गुरु ने जिन उद्धहरणों का जिक्र किया था, उसे खोलकर देखा गया। सभी विवरण सही पाए गए। पाया गया कि जिस स्थान पर श्रीराम जन्मभूमि की स्थिति बताई गई, विवादित स्थल ठीक उसी स्थान पर पाया गया। जगद्गुरु के बयान ने फैसले का रुख मोड़ दिया। सुनवाई करने वाले जस्टिस ने भी इसे भारतीय प्रज्ञा का चमत्कार माना। एक व्यक्ति जो देख नहीं सकते, कैसे वेदों और शास्त्रों के विशाल संसार से उद्धहरण दे सकते हैं, इसे ईश्वरीय शक्ति ही मानी जाती है।
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