Karpoori Thakur Biography Hindi, Age, Wiki, Wife, Family, Death, Date of Birth, Wife, Family, Height, Career, Nick Name, Net Worth:
भारत के महान स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक, राजनीतिज्ञ और बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दिया जाएगा. कर्पूरी ठाकुर को उनकी लोकप्रियता के कारण जननायक कहा जाता है. उनका जन्म बिहार के समस्तीपुर में हुआ था. उनकी जन्म शताब्दी के मौके की पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति भवन की ओर से इसका ऐलान किया गया.
जननायक कर्पूरी ठाकुर एक स्वतंत्रता सेनानी, शिक्षक और राजनेता के रूप में जाने जाते थे. बिहार के दूसरे उपमुख्यमंत्री और फिर दो बार मुख्यमंत्री रहे कर्पूरी ठाकुर ने राजनीतिक जीवन में अपने सिद्धांतों को नहीं छोड़ा. इसकी वजह से वह असली हीरो बन गए.’कर्पूरी ठाकुर भारत छोड़ो आन्दोलन में कूद पड़े. उन्हें 26 महीने तक जेल में रहना पड़ा. उन्होंने 22 दिसंबर 1970 से 2 जून 1971 तक और 24 जून 1977 से 21 अप्रैल 1979 तक बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया. कर्पूरी ठाकुर जैसा समाजवादी विचारधारा पर जीने वाले व्यक्ति अब बहुत कम ही देखने को मिलेंगे. कौन हैं
Karpoori Thakur Bharat Ratna: केंद्र सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) को देश के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार ‘भारत रत्न’ से सम्मानित करने का ऐलान किया है. ‘जननायक’ के नाम से मशहूर कर्पूरी ठाकुर दो बार बिहार के मुख्यमंत्री रहे और सामाजिक न्याय के पुरोधा कहे जाते हैं. नाई परिवार में जन्मे कर्पूरी ठाकुर अपने सिद्धांतों के लिए मशहूर थे.
कर्पूरी ठाकुर जब 1952 में पहली बार चुनाव मैदान में उतरे तब उनकी जेब बिल्कुल खाली थी. इसी वजह से वह चुनाव लड़ने से हिचक रहे थे. ठाकुर के समर्थकों ने उनसे ताजपुर विधानसभा से चुनाव लड़ने को कहा, पर उन्होंने साफ मना कर दिया. बाद में सोशलिस्ट पार्टी के बड़े नेताओं की मांग के बाद चुनाव लड़ने को तैयार हुए, लेकिन एक शर्त रख दी.
कर्पूरी ठाकुर ने शर्त रखी कि वह चंदे पर ही चुनाव लड़ेंगे. राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ‘जननायक कर्पूरी ठाकुर स्मृति ग्रंथ’ में लिखते हैं कि कर्पूरी ठाकुर ने फैसला किया कि वह चंदा जुटाकर चुनाव लड़ेंगे और और चवन्नी-अठन्नी का चंदा लेंगे. ज्यादा से ज्यादा 2 रुपये का सहयोग लेंगे. उन दिनों जयप्रकाश नारायण की पत्नी प्रभावती देवी इकलौती थीं, जिन्होंने 5 रुपये का चंदा दिया था. चंदा जुटाकर कर चुनाव लड़ने वाले ठाकुर ने पहले ही चुनाव में कद्दावर नेता को हरा दिया था.
एक-एक पैसे का रखते थे हिसाब
हरिवंश लिखते हैं कि कर्पूरी ठाकुर अपने जीवन में एक लोकसभा चुनाव को छोड़कर कभी नहीं हारे और जीवन भर चंदे से ही चुनाव लड़ा. वह चंदे के एक-एक पाई का हिसाब खुद रखते थे और राजनीतिक चंदे का कभी निजी काम के लिए इस्तेमाल नहीं किया. कर्पूरी ठाकुर जब तक जीवित रहे, उनके पास हमेशा पैसे का अभाव रहा. अपनी चाय-पानी और टिकट जैसी चीजों का खर्च खुद वहन किया करते थे. ना तो कभी पार्टी से लिया और न कभी कार्यकर्ताओं को इस मदद के लिए प्रेरित किया.
कर्पूरी ठाकुर (Karpoori Thakur) हमेशा दूसरों को बहुत ध्यान से सुना करते थे और उनसे ज्ञान लिया करते थे. दिनभर लोगों की भीड़ से घिरे रहते. सबको सुनते और अपनी किताबों का गट्ठर कांख में दबाए रहते. जैसे ही मौका मिलता, किताबों में खो जाते. किताबों के जरिए देश, दुनिया को और करीब से जानने-समझने की कोशिश करते.
कर्पूरी ठाकुर बिहार के शिक्षा मंत्री भी रहे. जब उन्होंने शिक्षा मंत्री का कार्यभार संभाला तो सबसे पहला काम यह किया कि मैट्रिक की परीक्षा से अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म कर दी. उसके बाद विपक्ष के निशाने पर आ गए. विपक्ष कहने लगा कि चूंकि उन्हें खुद अंग्रेजी नहीं आती, इसलिए अंग्रेजी हटा दी.
उस साल बिहार बोर्ड से मैट्रिक में पास हुए बच्चों को ‘कर्पूरी डिवीजन’ से पास कहा जाने लगा. दिलचस्प बात यह है कि जिस साल बिहार सरकार ने मैट्रिक से अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म की थी, उसी साल पश्चिम बंगाल की वामपंथी सरकार ने भी ऐसा ही किया था.
कर्पूरी ठाकुर ऐसे नेता थे जिनकी विपक्षी नेता भी इज्जत किया करते थे. बीजेपी नेता भोला सिंह उनसे जुड़ा है एक दिलचस्प संस्मरण सुनाते हैं. वह लिखते हैं कि कर्पूरी ठाकुर मुख्यमंत्री तो बन गए लेकिन उनका घर वैसे ही उजाड़ का उजाड़ रहा. उन्होंने अपना घर बनवाने पर ध्यान नहीं दिया. उठने-बैठने की ढंग की जगह तक नहीं थी. बाद में उनका घर बनवाने के लिए 50000 ईंट भेजी गई, पर कर्पूरी ठाकुर ने उन ईंट से अपना घर ना बनवाकर गांव का स्कूल बनवा दिया था.
कर्पूरी ठाकुर अपने जीवन में सिर्फ एक चुनाव हारे. वह 1984 का लोकसभा चुनाव था. विधानसभा चुनाव में आजीवन अजेय रहे. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में कर्पूरी ठाकुर अपनी इच्छा के विपरीत समस्तीपुर लोकसभा सीट से लोकदल प्रत्याशी के रूप में मैदान में उतरे. उन दिनों इंदिरा की हत्या के बाद सहानुभूति की लहर चल रही थी और इस लहर की चपेट में वह भी आ गए.
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